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4 December 2020
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Posted By Editor
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ऑनर किलिंग
“ऑनर किलिंग एक ऐसा कृत्य है, जिसमें परिवार के पुरुषों द्वारा महिलाओें की हत्या केवल
इसलिए कर दी जाती है, क्योंकि पुरुषों को लगता है कि उनके परिवार के सम्मान को नुकसान पहुँचाया गया है।” Human Rights Watch
‘ऑनर किलिंग’ शब्द को समझाना थोड़ा कठिन है क्योंकि सभ्य समाज इस शब्द पर आपत्ति ले रहा है कि कैसे किलिंग (हत्या) शब्द का संबंध ऑनर (सम्मान) से हो सकता है। ‘ऑनर किलिंग’ शब्द ऐसी हत्याओं के लिए उपयोग किया जाता है जो तथाकथित सम्मान की रक्षा के लिए की जाती है।
ऐतिहासिक रूप से ऑनर किलिंग के उद्भव का कोई प्रमाण नहीं मिलता है, लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि इसकी शुरुआत दक्षिण एशियाई प्रायद्वीप में बलूचिस्तान के बलूच लोगों में सर्वप्रथम हुई होगी और जैसे-जैसे इन लोगों का प्रसार होता गया, ये अपराध विश्व भर में फैलते गए। ये संभव है कि ये अपराध रूढ़िजन्य होकर पाकिस्तान और भारत से होते हुए विश्व भर में फैले।
Human Rights Watch के अनुसार किलिंग एक ऐसा कृत्य है जिसमें परिवार के पुरुषों द्वारा महिलाओं की हत्या केवल इसलिए कर दी जाती है, क्योंकि पुरुषों को लगता है कि उनके व उनके परिवार के सम्मान को नुकसान पहुँचाया गया है।
अध्ययनों से सामने आया है कि केवल शक के आधार पर भी कि महिला का किसी पुरुष से अनैतिक संबंध है या अनैतिक संबंधों के कारण पेट फूलना या एनीमिया की वजह से मासिक धर्म का बंद हो जाना भी शक का आधार बनता है और परिवार के पुरुषों तक ये जानकारी महिलाएँ ही पहुँचाती हैं और पुरुषों को उन्हें दण्डित करने के लिए उकसाया जाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि महिलाएँ ऑनर किलिंग के अपराध में दुष्प्रेरक का कार्य करती हैं, जिन्हें प्रायः अनदेखा कर दिया जाता है।
ऑनर किलिंग के अपराध में दोषी व्यक्तियों को दण्ड देने के मामले में सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि कोई भी व्यक्ति साक्षी के रूप में सामने नहीं आता। यहाँ तक कि समाज के लोग भी इस अपराध का समर्थन ही करते दिखाई पड़ते हैं। भयावह स्थिति यह है कि गाँव के लोग यहीं तक नहीं रुकते, वे ऐेसे कृत्यों का जश्न मनाते भी दिखाई पड़ते हैं।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की बात करें तो इसके अंतर्गत ऑनर किलिंग जैसे घृणित अपराध को अब तक अलग से दण्डनीय नहीं बताया गया है। अपितु यह कृत्य भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300 (हत्या) या धारा 299 (आपराधिक मानव वध) की परिभाषा के अंतर्गत ही आता है। मुझे ऐसा लगता है कि जहाँ भारतीय दण्ड संहिता में अपराध की वृहद् कोटियाँ एवं दण्ड विस्तृत रूप से प्रावधानित हैं, वहीं ऑनर किलिंग को अपराध के रूप में शामिल न किए जाने का कारण यह हो सकता है कि जब दण्ड विधि का संहिताकरण किया गया होगा, तब प्रथम विधि आयोग के सदस्यों ने कल्पना भी नहीं की होगी कि ऐसा घृणित कृत्य भी किसी सभ्य समाज द्वारा किया जा सकता है।
जिस तरह सती प्रथा का भारत से लगभग उन्मूलन हो चुका है, ठीक उसी तरह ऑनर किलिंग के अपराध का उन्मूलन करने के लिए निम्न सुझावों पर अमल किया जाना चाहिए-
(1) खाप पंचायतों को शिथिल किया जाए और उन्हें कानून की विधिवत् जानकारी दी जाए।
(2) महिलाओं को शिक्षित किया जाए।
(3) महिलाओें को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्य किये जाएं।
(4) अंतर्जातीय विवाह को बढ़ावा दिया जाए।
(5) कानून और प्रशासन को सक्षम बनाया जाए, ताकि वे सही समय पर उचित कदम उठा सकें।
(6) ऐसे अपराधों के संबंध में न्यायालयों में शीघ्र विचारण कर कठोर दण्ड होना चाहिए, जिससे अपराधियों के मन में भय उत्पन्न हो।
उक्त विचारों को अमल में लाते हुए न्यायपालिका, कार्यपालिका तथा आम जनता विशेषकर युवाओं को आगे आना होगा, ताकि इस तरह के घृणित, अनैतिक व जघन्य अपराध का समाज से उन्मूलन किया जा सके।