“सूचना का अधिकार”

चुनाव सुधार की दिशा में बढ़ाया गया एक कदम

“जानने के अधिकार के बिना स्वतंत्र और निष्पक्ष

चुनाव की कल्पना नहीं की जा सकती है।”

                                                          -उच्चतम न्यायालय

सूचना का अधिकार अभिव्यक्ति के अधिकार का एक महत्वपूर्ण अंग है। भारत में यह अधिकार मूल अधिकारों के साथ लागू नहीं किया गया था, जिसका कारण 1923 का शासकीय गुप्त बात अधिनियम-1923 है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी शासकीय गुप्त बात अधिनियम के लागू रहने के कारण सूचना के अधिकार को वैधानिक मान्यता देने में बाधा आती रही थी। विभिन्न आंदोलनों के चलते सन् 2002 में पहला सूचना स्वातंत्र्य विधेयक-2002 संसद से पारित हुआ था लेकिन सरकार के अनमनयस्क्ता के चलते अधिसूचित नहीं हो पाया। 2005 में पुनः यह अधिनियम विभिन्न जनआन्दोलनों के चलते सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के नाम से पारित हुआ और लागू किया गया।

सूचना का अधिकार अधिनियम के निर्माण के साथ ही हमारा देश पारदर्शिता के मामले में एक आगे बढ़ा है। सूचना का अधिकार लोकतंत्र का आधार है और यह सत्ता के निरंकुश इस्तेमाल पर रोक लगाता है। सूचना के अधिकार से सत्ता और शासन में जनता की भागीदारी बढ़ी है, जिससे सुशासन की प्रक्रिया को विस्तार मिला है।

सूचना के अधिकार को मान्यता देते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा था-फ्जानने के अधिकार के बिना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की कल्पना नहीं की जा सकती है।” न्यायालय के अनुसार प्रत्याशी का पूर्व आचरण, सम्पत्ति का ब्यौरा, शिक्षा का स्तर आदि मतदाता को सही प्रत्याशी को चुनने में सहायता करते हैं। खण्डपीठ के इस निर्णय के बाद ही मतदाताओं को निम्नलिखित सूचना देना अनिवार्य कर दिया गया है:-

(1)   यह कि क्या प्रत्याशी पूर्व में दोषसिद्ध किया गया है या जुर्माने से दण्डित है।

(2)   नामांकन पत्र भरने से छः माह पहले प्रत्याशी पर लगे ऐसे आरोप का विवरण जिसमें दो वर्ष या अधिक की सजा का प्रावधान है।

(3)   प्रत्याशी उसके परिवार के सदस्यों तथा आश्रितों की चल-अचल सम्पत्ति तथा बैंक या अन्य संस्थाओं में जमा उसकी धनराशियों का विवरण।

(4)   प्रत्याशी पर विशेषकर वित्तीय संस्थाओं अथवा सरकारी संस्थाओं का बकाया।

(5)   प्रत्याशी की शैक्षिक योग्यता का विवरण आदि।

भारत के निर्वाचन आयोग ने सूचना के अधिकार को न केवल मान्यता दी है, बल्कि इसका कड़ाई से पालन भी सुनिश्चित कराया जा रहा है।

सूचना का अधिकार अधिनियम एक पारदर्शी शासन प्रणाली का पक्षधर है। अधिनियम के उद्देश्य खण्ड में यह स्पष्ट अभिव्यक्ति है कि लोक प्रशासन में खुलापन, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए इस विधि को पारित किया जा रहा है।

यह एक सकारात्मक कदम है, जो भारत की चुनाव सुधार प्रक्रिया में मील का पत्थर साबित होगा। यदि इसका कड़ाई से पालन किया जाए तो प्रशासन में और अधिक पारदार्शिता एवं चुस्ती लाई जा सकती है।

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