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5 December 2020
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Posted By Editor
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Under हिन्दी
न्याय में विलंब न्याय से इंकार है
‘सुना है हवाओं को सोहबत बिगाड़ देती है,
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है।
जुर्म करने वाले इतने बुरे नहीं होते,
सज़ा न देकर अदालत बिगाड़ देती है।।”
¶Justice delayed is justice denied¸ एक न्यायिक सूत्र है। इसका मूल भाव यह है कि पीड़ित को युक्तियुक्त समय के भीतर न्याय सुलभ होना चाहिए। समय पर न्याय न दिया जाना वस्तुतः न्याय से वंचित करने के समान है। त्वरित न्याय ही प्राकृतिक न्याय की मूलभूत अपेक्षा है।
सूत्र ¶Justice delayed is justice denied¸ का प्रयोग सर्वप्रथम विलियम एवर्ट ग्लैडस्टन द्वारा किया गया था। त्वरित न्याय की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं- जवाहरलाल नेहरू ने कहा था-फ्भारत में न्याय सरल, त्वरित तथा सस्ता होना चाहिए। मुकदमेबाजी एक रोग की भाँति है। इसे पहले फैलने देना और उसके बाद चिकित्सक की तलाश में भागना अच्छा नहीं है। मुकदमों का त्वरित निस्तारण होना चाहिए, क्योंकि विलंबित न्याय, न्याय से इंकार के समान है।”
न्याय में विलंब के कारण
(1) जनसंख्या वृद्धि।
(2) न्यायिक तंत्र की अपर्याप्तता।
(3) अपीलों के प्रावधान।
(4) कार्यवाहियों का स्थगन।
(5) अधीनस्थ न्यायालयों में ढाँचागत सुविधाओं का अभाव।
(6) न्यायिक पदों की रिक्तता।
(7) पुलिस तथा अन्वेषण बलों के पास कार्यों की अधिकता।
(8) अतिविस्तृत प्रक्रिया।
त्वरित निस्तारण के सुझाव
(1) कार्यवाहियों का अनावश्यक स्थगन रोका जाना चाहिए।
(2) माध्यस्थ तथा लोक अदालतों के माध्यम से मामलों का निपटारा करने की बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
(3) अदालत के बाहर सुलह, समझौता कराने के प्रयास किए जाने चाहिए।
(4) न्यायाधीशों के रिक्त पदों को शीघ्र भरा जाना चाहिए।
(5) न्यायाधीशों के लिए नवीन पदों का तथा नए न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिए।
(6) दाण्डिक मामलों में अन्वेषण के लिए एक स्वतंत्र अधिकरण का गठन किया जाना चाहिए।
(7) समान मामलों को एक साथ प्राथमिकता के आधार पर निपटाया जाना चाहिए।
(8) लिखित दलीलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
(9) विधि तथा विधिक प्रक्रिया का सरलीकरण किया जाना चाहिए।
(10) यथा-संभव संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया को न्यायालयों द्वारा अपनाया जाना चाहिए।
यह सत्य है कि त्वरित न्याय वर्तमान समय की माँग है फिर भी त्वरित न्याय उपलब्ध करवाने की दिशा में अनावश्यक शीघ्रता से बचना होगा, क्योंकि जल्दबाजी में दिया गया न्याय भी न्याय की हानि ही करता है।
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