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29 March 2023
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Posted By Vidhik Shiksha
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मानवाधिकार
“मानवाधिकार सभी मनुष्यों को प्राप्त वे अधिकार हैं,
जो सम्मानजनक जीवन जीने हेतु आवश्यक हैं।” -एम-जे-
मानवाधिकार की सुरक्षा निश्चित करना किसी भी सभ्य समाज के लिए अनिवार्य है। दूसरे शब्दों में, मानवाधिकारों का संरक्षण अथवा उल्लंघन किसी भी देश, राष्ट्र अथवा समाज की प्रगति, विकास एवं प्रगति का मापदण्ड है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के तत्वावधान में 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकारों की सर्वमान्य घोषणा की गयी थी। इस उपलक्ष्य में 10 दिसम्बर का दिन प्रति वर्ष मानवाधिकार दिवस के रूप में विश्वभर में मनाया जाता है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्वयं ही संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर में वर्णित मानवाधिकार सम्बन्धी सभी विचारों, आदर्शों, मूल्यों, मानकों तथा शब्दावली का समुचित रूप से वर्णन किया गया है।
मानवाधिकारों की यह घोषणा सभी राष्ट्रों के लिये अनुकरणीय है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र में प्रस्तावना का उद्देश्य विश्व समुदाय में स्वतंत्रता, न्याय और शांति की स्थापना है। अनुच्छेद प्रथम और द्वितीय के अन्तर्गत मानव की गरिमा, स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व की भावना पर बल दिया गया है। इनमें जाति, वर्ण, लिंग, धर्म, भाषा, राजनीतिक विचार, आर्थिक स्थिति, जन्म, जन्म-स्थान अथवा किसी अन्य स्थिति के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव अथवा पक्षपात वर्जित माना गया है। अनुच्छेद तीन, चार और पाँच के अनुसार दासता को वर्जित किया गया है और इस बात का प्रावधान किया गया है कि किसी को भीऋ किसी के प्रति क्रूर, अमानवीय अथवा अपमानजनक व्यवहार करने का अधिकार नहीं है। अनुच्छेद 18, 19 और 20 में निजी विचारों की अभिव्यक्ति की तथा धार्मिक स्वतंत्रता के अतिरिक्त शान्तिपूर्ण संघ और संगठन के विषय में उल्लेख किया गया है।
मानवाधिकार मानव मात्र को प्राप्त ऐसे अधिकार हैं जो मनुष्य की गरिमा और स्वतंत्रतामय जीवन के लिये आवश्यक हैं। इन अधिकारों को प्रायः मौलिक अधिकार, नैसर्गिक अधिकार, जन्मसे अधिकार आदि नामों से जाना जाता है।
प्राचीन दस्तावेज:
अनेक प्राचीन दस्तावेजों में तथा धार्मिक और दाार्शनिक पुस्तकों में ऐसी अनेक अवधारणायें मिलती हैं जिन्हें मानवाधिकारों के रूप में चिंहित किया जा सकता है। आधुनिक मानवाधिकार कानून तथा मानवाधिकार की अधिकांश अवधारणायें समसामयिक इतिहास से सम्बन्धित हैं। ‘द टवैल्व आर्टिकल्स ऑफ दि ब्लैक फॉरेस्ट’ (1525) को यूरोप में मानवाधिकारों का सर्वप्रथम दस्तावेज माना जाता है। यह जर्मनी के किसान विद्रोह स्वाबियन संघ समक्ष उठायी गई किसानों की मांग का एक हिस्सा है। ब्रिटिश बिल ऑफ राइट्स ने यूनाईटिड किंगडम में सिलसिलेवार तरीके से सरकारी दमन कार्यवाहियों को अवैध करार दिया।
फ्रांस में दो प्रमुख क्रान्तियां
1776 में संयुक्त राज्य अमेरिका 1789 में फ्रांस में दो प्रमुख क्रान्तियां घटी जिसके फलस्वरूप क्रमशः संयुक्त राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा एवं फ्रांसीसी लोगों की मानव तथा नागरिकों के अधिकारों का अभिग्रहण हुआ।
मानवाधिकार मनुष्य की शारीरिक स्वतंत्रता के लिये, गिरफ्तारी व बेवजह रोक-टोक से रक्षा के लिये, मनुष्य के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए, विधि के समक्ष समता प्राप्त करने के लिए, मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए, उच्च जीवन स्तर को बनाये रखने के लिए, राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति प्राप्त करने के लिए, मनुष्य के सर्वांगिण विकास के लिए और मानव मात्र के स्वतंत्रता और गरिमामय जीवनयापन के लिए आवश्यक हैं।
अतः हम कह सकते हैं कि मानवाधिकार सभी मनुष्यों को प्राप्त वे अधिकार हैं, जो अंतर्निहित हैं, अहस्तान्तरणीय हैं, अपरिवर्तनीय हैं और मनुष्य के गरीमामय जीवन के लिय आवश्यक हैं। मूल अधिकारों के रूप में भारतीय संविधान इनका संरक्षक है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व मानवाधिकार परिषद तथा भारत में राष्ट्रीय एवं राज्य मानवाधिकार आयोग मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु सतत् प्रयासरत हैं, आवश्यकता है तो केवल मानव मात्र को इन अधिकारों के प्रति जागरूक होने की।
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